आज सुबह देखा
तो एक गठ्ठर पड़ा था
कपड़ों का, बेड पर
शायद फोल्ड होने के लिए
रखा था
दोपहर तक जब
काम कुछ हल्का हो जाता है
घर में ..
कपड़ों में बनियानें थीं
मेरी और मेरे बेटे की
जो अब साइज़ में कुछ कुछ
बराबर हो चुकी हैं
ज़रा गौर किया तो देखता हूँ
की छोटी वाली चमक रही हैं
एकदम बढ़िया क़्वालिटी
की दमक और
किसी में कोई छेद भी नहीं है
बड़ी वाली बनियानें
मटमैली सी थीं
पतले कपड़े की सस्ती वाली
अरे अंदर ही तो पहनना है
वाली मिडिल क्लास मेन्टेलिटी
का ब्रांड झांकता हुआ गले पर
कुछ में छेद भी थे
वो अभी इतने बड़े नहीं हुए थे
कि सौ रुपया खर्च किया जाए
आखिर हवा भी तो आती है
ताज़ा ताज़ा ..
मैं कुछ देर मुस्कुराया
पर फिर सोचने लगा
ये फर्क क्यों ?
मनन किया तो बात
आ गयी समझ में
सरल बात थी पर
गहरी भी
दरअसल बेटे की मां
उसके लिए
लाती है बनियान
और मैं
खुद अपने लिए खरीदता हूँ
पापा भी तो यही करते थे
हमेशा
– आहँग
Super
Too sweet